आदिमानव की कहानी | adimanav ki kahani,full story (hindi) ME

ADIMANAV KI KAHANI - आदिमानव की कहानी 

adimanav ki kahani हेल्लो दोस्तों आज की पोस्ट में हम आपको बतायेगें आदिमानव की कहानी के बारे जी हाँ दोस्तों आदिमानव के बारे - adimanav ki kahani की पूरी जानकारी इस पोस्ट के माध्यम से देने वाले है
जैसे की आपको पता है आदिमानव की कहानी हमारे विकास से जुडी हुई है -adimanav ki kahani से ही हमें अपने पुराने समय का ज्ञान होता है - हमारा जीवन पहले किस प्रकार से बीतता था -adimanav ki kahani


adimanav ki kahani

adimanav ki kahani,full story(hindi)हमारे विकास की एक कहानी बहुत लंबी है।
आज हम विकास की कई सीढ़ियां पार कर चुके हैं और लगातार आगे बढ़ते जा रहे हैं।
कह नहीं सकते, हमारे कदम कहां जाकर रुकेंगे।
आज हमारे लिए हवाई जहाज से आसमान में उड़ना उतना ही सरल है जितना रेलगाड़ी या मोटर में बैठना।
बात की बात में हम हजारों मील की दूरी पार कर सकते हैं। हमसे बहुत दूर के देश हमारे बहुत नजदीक आ गये हैं।
हजारों आदमियों का काम कर सकने वाली मशीनें बनाना हमारे बायें हाथ का खेल हो गया है।
बड़े-बड़े पर्वत हमें आगे बढ़ता देख हमारे रास्ते से हट जाते हैं।
नदियां हमारे इशारे पर अपना बहाव बदल देती हैं।
झीलें और तालाब हमारी खेती की सिंचाई करने दौड़ पड़ते हैं।
जमीन हमारी ताकत का लोहा मानकर अपने भीतर छिपाकर रखा खजाना याने सोना, चांदी, लोहा,
पीपल और अनेक प्रकार की कीमती धातुएं हमारे सामने बिखेर देती हैं।
हम क्या नहीं कर सकते ?
हम दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत हिमालय का सबसे ऊंची चोटी पर भी अपना झंडा फहरा चुके हैं। हम दक्षिण ध्रुव की यात्रा भी कर चुके हैं।
अब हम अणुबम ही नहीं, पर उपग्रह तक बनाकर आसमान में छोड़ने लगे हैं। कुछ ही सालों में हम चन्द्रमा की यात्रा भी करने लगेंगे।
पर हमारा यह विकास कुछ दिनों, महीनों या वर्षों का विकास नहीं है।
यहां तक बढ़ने में हमें कितना समय लग गया, इसका अंदाज लगाना भी कठिन है। हमें यहां तक बढ़ने में सैकड़ों हजारों ही नहीं, पर लाखों साल लगे हैं। आज मैं वही कहानी तुम्हें सुना रहा हूं।-adimanav ki kahani

adimanav ki kahani - कहानी शुरू हुई


मनुष्य जमीन पर आया और उसकी कहानी शुरू हो गयी।
बच्चा पैदा होता है। वह कुछ नहीं जानता, वह कहां से आया ?
कहां आ गया ? क्यों आया ? वह कैसे रहेगा ? उसे कौन सहारा देगा ?
उसे क्या करना है ? उसे भूख लगती, वह रोने लगता।
कोई उसे दूध पिला देता, वह चुप हो जाता। वह इसी तरह अपने जीवन के विकास के रास्ते पर बढ़ता जाता है।
वह करवट बदलने लगता, मुस्कराने लगता, बैठने लगता, घुटनों के बल रेंगने लगता, दीवाल पकड़कर खड़ा होने लगता, कपड़े पहनने लगता, पढ़ने-लिखने और एक दिन अपने पैरों पर खड़ा होकर अपनी जिम्मेदारी समझने लगता। उसे जन्म से यहां तक आने में बीस-पच्चीस वर्ष लग गये।
मनुष्य के विकास की कहानी भी कुछ-कुछ ऐसी ही है।
जब वह पहले-पहल जमीन पर आया, वह एक नये बच्चे की तरह ही अबोध था। उसका पालन-पोषण करने वाला कोई दूसरा न था। उसे किसी का सहारा न था। उसके रहने को कोई घर न था। वह जानवरों की तरह नंगा यहां-वहां घूमता रहता। कंदमूल, फल, पत्ते जो मिल जाता खा लेता। जहां नींद आती, वहीं सो जाता।
जब आंख खुल जाती, उठ बैठता और फिर घूमने लगता।
आदमी और जानवरों में कोई भेद न था।
उसे जंगल के जानवरों से डर लगा।
वह सांपों की लपलपाती जीभ देखकर घबराने लगा। शेर की भयानक दहाड़ सुनकर कांप गया। गर्मी, बरसात और सर्दी से उसे तकलीफ होने लगी वह कभी पेड़ों की छाया में और कभी पहाड़ों की गुफाओं में रहने लगा।
वह एक प्रकार का जंगली जानवर ही था। जो जानवर उससे कमजोर थे, उन्हें वह मारकर खा जाता।

WAH ADAMI BNANE LAGA -वह आदमी बनने लगा

मनुष्य जंगली अवस्था पार कर आगे बढ़ा। जंगली अवस्था में उसे एक ही काम था।
वह भोजन की खोज में यहां-वहां घूमता रहता था।
उसे पानी कहीं भी मिल जाता था, पर खाने की चीजें खोजनी
पड़ती थीं। उसे सुनसान जंगल में अकेले घूमना अच्छा न लगी।
वह टोली बनाकर घूमने लगा। रात होती।
सब ओर घना अंधेरा फैल जाता। ठंडी हवा चलने लगती।
उसे अंधेरे में डर लगता। ठंडी हवा से तकलीफ होती। जब कभी वह जंगल में आग जलती देख लेता,
उसे कुछ आराम मालूम होता।
उसकी ठंड की तकलीफ कम हो जाती। अंधेरा भी कम मालूम होता।
उसे आग की लाल-पीली लपटें देखने में भी आनंद प्राप्त होता।
उसे आग की लाल-पीली लपटें देखने में भी आनंद देखने में भी आनंद प्राप्त होत।
उसे आग बड़े काम की चीज मालूम हुई।
उसने उसे अपने पास रखना चाहा। उसने देखा आग में कोई चीज डालने से वह गल जाती है। कहीं उसे
आग में जला जानवर मिल गया।
उसने उसका मांस चखकर देखा। उसे खाने में बड़ा मजा आया।
उसने जानवरों का कच्चा मांस खाना छोड़ दिया। वह मांस को आग में भूनकर खाने लगा। आग उसे ठंड से बचाने लगी। उसे रोशनी देने लगी। उसे मजेदार मांस खिलाने लगी।
पर मनुष्य की बड़ी प्यारी चीज बन गयी। ।
उसने आग को अपने पास बनाये रखने का काम स्त्री को सौंप दिया।
वह जंगल में लकड़ी-कंडे इकट्टे करती।
उन्हें जलाकर हमेशा आग जलाये रखती। उसमें मांस भूनकर आदमी को देती और खुद खाती।
उसे बच्चों की देख-रेख भी करनी पड़ती।
छोटे बच्चों को लेकर आदमियों के साथ जंगल में घूमना उसे कठिन जान पड़ा।
वह आग लेकर यहां-वहां नहीं घूम सकती थी।
उसका एक स्थान में रहना जरूरी हो गया। | आदमी बाहर जाते। कंदमूल, फल इकड़े करते, जानवरों का शिकार करते।
शाम तक लौट आते और स्त्री-बच्चों के साथ भोजन करते।

DIMAG BADHNE LGA - बुध्दि बढ़ती गयी

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स्त्री का जंगलों में भटकना बंद हो गया।
वह एक ही स्थान में रहने लगी। उसे दिन भर अकेले बैठे रहना अच्छा न लगता। उसके मन में तरह-तरह की बातें उठा करतीं।
उसने आदमी के
मारे हुए जानवरों की खाल उतारी। पानी से साफ की।
धूप में डालकर सुखा ली। उसने उस पर बच्चों को लिटा दिया।
वे बहुत आराम से सो गये। वह उसे बच्चों पर उढ़ा देती। बच्चों की ठंड
कम हो जाती। उसने देखा जानवरों का चमड़ा ओढ़ने-बिछाने के काम आ सकता है वह तेज पत्थर से चमड़ा काटकर उसे मनचाहा आकार दे लेती। जानवरों के पेट की आंतें रस्सी का काम देने लगी। नुकीले पत्थरों से चमड़े में छेद हो जाता। वह चमड़े के कपड़े बनाने लगी।
उसने जंगल की घास और पेड़ों के सूखे रेशे इकड़े किए। वह उन्हें एक-दूसरे पर आड़े खड़े रखकर उनसे चटाई बनाने लगी। प्यास लगने पर पानी के स्थान पर जाना पड़ता था। स्त्री ने सोचा, पानी अपने पास ही रहे, तो अच्छा। कंदमूल फल, मांस आदि रखने के लिए भी उसे किसी चीज की जरूरत थी। वह गहरे पत्थरों में पानी रखने लगी। खाने की चीजें रखने के लिए पत्तों और घास की टोकरी बनाने लगी।
उसने देखा कुछ पत्थर ऐसे हैं, जो आग पर रखने से नहीं फूटते। वह उनमें पानी गर्म करने लगी। उसने कच्ची चीजें पकाना शुरू कर दिया। अब खाने की कई चीजें उबालकर खाई जाने लगीं। मांस भी पकाया जाने लगा। वह दो पत्थरों से अनाज पीसने लगी। धीरे-धीरे अनाज पीसने की चक्कियां बनाने लगीं।

ADAMI BHI AAGE BADHNE LGA आदमी भी आगे बढ़ा

अभी तक आदमी जंगल में घूमकर पत्थरों या लकड़ियों से पशुओं का शिकार करता था। अब उसे पत्थरों का उपयोग मालूम हो गया। उसने पत्थरों के हथियार बनाये। वह उन्हीं से जानवरों का शिकार करने लगा। जानवरों के चमड़े की रस्सियां बनायीं। उससे जाल बनाया। उसकी सहायता से वह अपने काम के जानवर पकड़ने लगा। उसने नदियों में लकड़ी के लट्टे तैरते देखे। वह समझ गया कि लकड़ी पानी में नहीं डूबती। उसकी नाव बना ली। वह नाव पर बैठकर मछलियां पकड़ने लगा। नदियां पार करने लगा।

PASHUPAAL SHUR HUA- वह पशुपाल बना

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अभी तक मनुष्य के लिए जानवरों का एक ही उपयोग था। वह उनका शिकार करता और मारकर खा जाता था। उनका चकड़ा
उसके ओढ़ने-बिछाने और पहनने के काम आता था। धीरे-धीरे उसे मालूम हुआ कि कुछ जानवर ऐसे हैं, जिन्हें पालकर वह आर्थिक लाभ उठा सकता है। एक बात और थी। उसने जानवरों को पकड़ने के जाल और मारने के हथियार बना लिए थे। वह रोज जितने जानवर पकड़ता, सबको खा नहीं सकता था। कुछ जानवर उसके पास बच रहते। वह उन बचे हुए जानवरों को पालने लगा। उनमें से कुछ जानवर बड़े सीधे थे। आदमी के बच्चे बिना किसी डर के उनके पास चले जाते। उनसे खेलते और अपना मन बहलाते थे। यह देखकर मनुष्य ने उन्हें मारना छोड़ दिया। वह उनसे प्रेम करने लगा। अब वह ऐसे जानवरों को पालन लगा और पशुपाल बन गया।
कुछ दिनों में उसने देखा कि कुछ पशु-पक्षी उसके बड़े काम के हैं। कुत्ता उसके घर की रखवाली करता है। वह उसे शिकार में भी सहायता देता है। बिल्ली उसके भोजन की चीजें खाने वाले चूहों को खा जाती है। घोड़ा सवारी का काम देता है। वह घोड़े पर बैठकर जंगल में घूमता और शिकार करता। गधा उसे सामान ढोने में सहायता करता। गाय, भैंस, बकरी उसे मीठा दूध देती। वह इन पशुओं को पालने लगा। अब उसका जीवन पहले से अधिक सुखी हो गया। उसे अब एक स्थान से दूसरे स्थान में जाकर रहना होता, वह इन सबके साथ नये स्थान पर जाता। उसके ये पशु उसका सब सामान पहुंचा देते। वहां उसे भोजन की चीजें मिल जातीं और उसके पशुओं को चरने के लिए घास के मैदान मिल जाते। जंगलों में अकेले नंगा घूमने वाला मनुष्य अब एक परिवार और अनेक पशुओं का मालिक बन गया। जिस मनुष्य के पास जितने अधिक पशु होते, वह उतना ही धनवान समझा जाता। इस तरह पशुपाल बनने के साथ ही उसमें मालिक बनने की, बड़ा बनने की और अधिकार की भावना अपने आप आ गयी।

JISKI LATHI USI KI BAINS-जिसकी लाठी उसकी भैंस

पहले पशुओं पर किसी का अधिकार न था। इसी तरह स्त्री-बच्चों पर भी बंधन न था। वे किसी भी टोली के किसी भी आदमी के साथ रह सकते थे। मनुष्य के पशुपाल बनने पर यह बात न रही। जो पशुओं को पकड़कर पाल लेता, वे उसके अपने हो जाते। उसे स्त्री और बच्चों से भी अपने कामों में सहायता मिलने लगी थी। इसलिए वह उन पर भी अपना अधिकार समझने लगा। अधिकार की भावना बढ़ते ही आपस में लड़ाई होने लगी। एक टोली दूसरी टोली पर हमला कर देती और उसके स्त्री-बच्चे और पशु छीन लेती। जिसकी लाठी उसकी भैंस थी


KHETI KARNE LGA - वह खेती करने लगा


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मनुष्य ने पेड़ों के बीज जमीन पर गिरते देखे। उसने देखा कि बरसात का पानी गिरने पर उन चीजों में अंकुर आ गये हैं। कुछ ही दिनों में अंकुर पौधे बन जाते। वे पौधे बढ़कर पेड़ बन जाते। वे पेड़ ठीक उसी प्रकार के थे, जिस प्रकार के पेड़ से उनके बीज गिरे थे। उसकी समझ में आ गया कि बीज मिट्टी और जपानी से मिलकर पेड़ बन जाते हैं। उसने अपने खाने के बीजों को बरसात के पहले जमीन में दबा दिया। उनसे भी पौधे निकल आये। वे पेड़ बन गये। उनमें वैसे ही बीज आने लगे। उसे एक बीज से सैकड़ों बीज मिल गये। वह यह देखकर बड़ा खुश हुआ। । अभी तक वह अपने खाने के काम में आने वाले फल और बीज यहां-वहां से इकट्टे करता फिरता था। अब वह थोड़े से बीजों से बहुत से फल और बीज पाने का तरीका जान गया। उसने जंगल काटकर अपने पशुओं के लिए चारागाह बना लिए। अब वह अपने चारागाह का एक भाग इस प्रकार फल और बीज पैदा करने में लगाने लगा। इस तरह वह पशुपाल होने के साथ ही किसान भी बन गया।
वह बरसात में इस तरह अनाज और फल पैदा कर लेता था। कुछ दिनों में उसने सोचा कि वह सिर्फ बरसात में ही अनाज पैदा कर सकता है। उसके बाकी के महीने बेकार जाते हैं। उसके पास जमीन है। उसमें बोने के लिए बीज भी हैं। यदि वह फसल के
लिए पानी पा जाये, तो बरसात के बाद भी अनाज पैदा कर सकता है। वह नदी-नालों का पानी लाकर अपने खेत की सिंचाई करने लगा। अब वह दो बार अनाज पैदा करने लगा। बरसात में वर्षा के पानी से और खुले दिनों में नदी-नालों के पानी से।
कुछ खेत पानी के स्थान से दूर थे। उनकी सिंचाई किसी नदी या नाले के पानी से करना बहुत कठिन था। उसे मालूम हुआ कि जमीन को कुछ गहराई तक खोदने से पानी निकल आता है। उसने यही किया और कुएं बनने लगे। वह इन कुंओं के पानी से अपने खेतों की सिंचाई करने लगा। फलों और शाक-भाजियों के बागों में पानी देने लगा।
वह आगे बढ़ता गया। एक युग के बाद दूसरा युग आता गया। उसने बरसात का पानी रोककर तालाब बनाये। नदियों से नहरें निकालीं। कुंओं में पानी निकालने के लिए मोटे और रहट बनाये और वह पूरा सभ्य किसान बन गया। विज्ञान ने उसे नये-नये साधन दिये।
वह अब इन साधनों का उपयोग कर अधिक अनाज पैदा कर रहा है। उसकी अपनी सरकार भी उसे खेती के काम में सहायता करती रहती है।

KARIGARO KA JANM HUA - कारीगरों  का जन्म हुआ


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पहले मनुष्य की जरूरतें बहुत कम थीं। उसे खाने के सिवाय और किसी चीज की जरूरत न थी। पशुपाल बनने पर भी उसकी जरूरतें अधिक नहीं बढ़ीं। उसे खाने के लिए भोजन की चीजों और अपने पशुओं के लिए चारागाहों की ही जरूरत थी। अब भी वह पहनने और ओढ़ने-बिछाने के लिए चमड़े और पेड़ों के बड़े पत्ते काम में लाता था। किसान बनने पर उसकी जरूरतें कुछ बढ़ गयीं। वह किसान बनने पर ही असल में सभ्य बना । उसे खेतों की जुताई के लिए हल-बखर की जरूरत पड़ी। सिंचाई करने के लिए मोट और रहट की जरूरत पड़ी। खेती के दूसरे कामों के लिए उसे कुदाली, फावड़े, कुल्हाड़ी आदि की भी जरूरत थी। एक आदमी खेती करने के साथ ही अपनी जरूरत की ये सब चीजें बनाने का काम नहीं कर सकता था। यह देखकर कुछ लोग ये चीजें बनाने का काम
करने लगे। लोगों को कपड़ा, बरतन, आदि की भी जरूरत थी। कुछ दूसरे लोग ये चीजें बनाने लगे। इस तरह लोहार, बढ़ई, चमार, जुलाहे, कुम्हार आदि कारीगरों का जन्म हुआ।

KARKHANE KHULE- कारखाने खुले

किसान बनने पर मनुष्य के पास जैसे-जैसे अधिक पैसा होता गया, उसकी जरूरतें बढ़ती गयीं। जो जितना बड़ा किसान था, वह उतने ही अच्छे ढंग से रहना चाहता था। उसे सुंदर मकानों की जरूरत थी। उसे सुंदर कपडों की जरूरत थी। वह अपने घर में तरह-तरह की सुंदर चीजें रखना चाहता था। जैसे-जैसे जरूरतें बढ़ती गयीं, वैसे-वैसे जरूरतें की चीजों की अधिकता बढ़ती गयी। उनके बनाने वाले बढ़ते गये। उनकी दुकानें खुलती गयीं। उनके बाजार भरने लगे। इस तरह इन चीजों का व्यापार शुरू हो गया।
धीरे-धीरे एक दिन वह आया जब हाथ से काम करने वाले कारीगरों द्वारा लोगों की जरूरतें पूरी करना कठिन हो गया। नयी-नयी चीजें बनने लगीं। इनमें कुछ चीजें ऐसी भी थीं, जो हाथ से अच्छी नहीं बन सकती थीं। इन चीजों के बनाने के उपाय खोजे गये। इन्हें बनाने की मशीनें बनने लगीं। इस प्रकार तरह-तरह की चीजें बनाने के कारखाने खुल गये। विज्ञान का युग आया और उसने मनुष्य को उसकी जरूरतों और आराम की चीजें बनाने के लिए तरह-तरह के छोटे-बड़े सैकड़ों यंत्र दिये और अब ये यंत्र बिजली की सहायता से न जाने कितनी चीजों के ढेर लगाते जा रहे हैं।

BUSINESS HONE LGA - व्यापार होने लगा

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परिवार बढ़ते गये। परिवार के सदस्यों की संख्या बढ़ती गयी। उनकी जरूरतें बढ़ती गयीं। एक परिवार के द्वारा पैदा की गयी या बनायी गयी चीजों से समाज का काम नहीं चलता था। एक परिवार दूसरे परिवार की बनायी या पैदा की गयी चीजें लेने लगा। किसान को कपड़े की जरूरत थी। जुलाहे को अनाज की जरूरत थी। किसान ने जुलाहे को उसकी जरूरत का अनाज दे दिया। उसके बदले जुलाहे ने उसे कपड़ा दे दिया। उस समय आज की तरह रुपये, पैसे आदि
सिक्के न थे। लोग अपनी चीजों के बदले अपनी जरूरत की चीजें दूसरों से लेने लगे। इस तरह व्यापार शुरू हो गया। यह अदला-बदली का व्यापार पास-पड़ोस और गांव वालों से शुरू हुआ। धीरे-धीरे दूसरे गांवों तक बढ़ गया।
इस प्रकार व्यापार करने वाले अपना सामान अपनी पीठ पर या सिर पर रखकर अपने गांव में घूमते या दूसरे गांवों को जाते और उसके बदले अपनी जरूरत की दूसरी चीजें ले आते थे। जब आदमी पशु पालने लगा, तब उसका सामान बैल, घोड़े आदि पशुओं की पीठ पर लादकर लाया ले जाया जाने लगा। कुछ समय बाद गाड़ियां बनीं। उनमें बैल या घोड़े जोतकर माल ढोया जाने लगा।

ADKE BANNE LAGI - सड़के बनी

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आदमी, बैल, घोड़े आदि ऊबड़-खाबड़ सकरे रास्तों से जा सकते थे। ऐसे रास्तों से गाड़ियां न जा सकती थीं। इनके जाने के लिए चौड़ी सड़कें बनीं। ये सड़कें गाड़ियों के आने-जाने से खराब हो जाती थीं। बरसात के दिनों में इनसे गाड़ियों का जाना कठिन था। इस कठिनाई को दूर करने के लिए पक्की सड़कें बनने लगीं। धीरे-धीरे जंगलों के बीच से जाने वाले सकरे, कच्चे रास्तों का विकास आजकल की पक्की सड़कों, डामर रोड और सीमेंट रोड के रूप में हो गया। पुराने समय की गाड़ियों का विकास आजकल की मोटरों, ठेलों और बसों के रूप में हो गया।
सड़कों का विकास जमीन तक ही न रुका। मनुष्य ने समुद्रों और आसमान में भी सड़कें बना लीं। उसे समुद्रों और आसमान में सड़कें बनाने के लिए जमीन की सड़कों की तरह अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी। हम जो डोंगियां और छोटी नावें नदियां पार करने के लिए काम में लाते थे, उनका विकास जहाजों के रूप में हुआ। ये जहाज समुद्रों में चलने लगे। हमें एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए नजदीक के समुद्री रास्ते खोजने पड़े। ऐसे रास्ते देखने पड़े, जिन पर समुद्र की ऊंची लहरें न उठती हों।
हमने आसमान में रास्ते बनाने के लिए भी यही किया। हमने समुद्रों में चलने वाले जहाजों के बाद ही हवा में चलने वाले जहाज
बनाये। ये हवाई जहाज आसमान के रास्तों से चलने लगे। हमने इन्हें आसमान में ऐसे रास्तों से चलाना शुरू किया, जिन रास्तों पर जोरों की आंधी नहीं आती।
मनुष्य ने आसमान में पक्षियों को उड़ते देखा। उसके मन में भी पक्षियों की तरह आसमान में उड़ने की इच्छा हुई। पक्षियों के
पर थे। वे जब भी जमीन से आसमान में उड़ना चाहते, अपने पर फैला देते। मनुष्य के पर नहीं थे। वह उड़ नहीं सकता था। उसने देखा पक्षी जब पर फैलाकर ऊपर उड़ने लगते हैं तब हवा उन्हें थाम लेती है। इससे ये जमीन पर नहीं गिरते। उसने भी आसमान में उड़ने वाली चीज बनाना चाहा। उसने घास, रुई, कागज के टुकड़े
आदि को हवा में उड़ते देखा था। उसने इस तरह की हल्की, चीजों से गुब्बारा बनाया। उसे आकाश में उड़ता देखकर वह बहुत खुश हुआ। उसकी बुद्धि बढ़ती गयी। उसने धीरे-धीरे इस गुब्बारे का विकास हवाई जहाज के रूप में किया।
अब जमीन, आसमान और जल पर भी हमारा अधिकार है। हम इन तीनों रास्ते से आते-जाते और माल भी लाते ले जाते हैं। हमारा व्यापार खूब बढ़ गया है। हमारा गांव से शुरू होने वाला व्यापार अब संसार के कोने-कोने तक फैल गया है।

SIKKE BANE - सिक्के बने

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नयी-नयी चीजें बनने लगीं। उनका व्यापार शुरू हो गया। हमने चीजों की अदला-बदली से लेनदेन शुरू किया। यह कब तक चल सकता था ? इस तरह के लेनेदेन में हमें बड़ी कठिनाई होती थी। एक किसान को एक बैल की जरूरत थी। वह कुछ अनाज अपने । सिर पर या गाड़ी में रखे गांव भर में घूम-घूम कर कहता-कोई अनाज लेकर उसे एक बैल दे दे। गांव में किसी का बैल बिकाऊ नहीं है। यदि बैल बिकाऊ है, तो वह उसके बदले कपड़ा लेना चाहता है। वह बैल लेकर जुलाहे के पास जाता। उसे बैल के बदले कपड़े देने को कहता। जुलाहे को बैल की जरूरत नहीं है। वह कपड़े के बदले बकरी चाहता है। बकरी वाले को कपड़े की नहीं, जूतों की जरूरत है। जूते बनाने वाला चमार कुदाली चाहता है। इस हालत में कोई भी आदमी । अपनी जरूरत की चीज सरलता से नहीं खरीद सकता था।
अब ऐसी किसी चीज की तलाश शुरू हुई, जिसकी सभी को जरूरत हो। अनाज की सबको जरूरत थी। अनाज के बदले अपनी जरूरत की चीजें लेना शुरू हुआ। पर इसमें भी कम कठिनाई न थी। सभी के पास अपनी जरूरत की चीजें खरीदने को अनाज न होता। जिनके पास अधिक चीजें बेचने को होतीं, उनके पास अनाज
का ढेर लग जाता। वह इतना अनाज क्या करे ? जिनके पास केवल खाने भर को ही अनाज है, वे अपनी जरूरत की चीजें कैसे खरीदें ? यदि दूर के किसी गांव से कोई चीज खरीदना हो, तो कोई अनाज लादकर कब तक आये-जाये ? जो अपना माल बेचने लाते, उन्हें भी माल के बदले अनाज लादकर ले जाना पड़ता था। अब क्या किया जाये ?
इसी तरह मनुष्य को लोहा, तांबा, चांदी, सोना आदि धातुओं का पता लगा। अब अनाज के बदले इन धातुओं से लेन-देन शुरू हुआ। छोटे लेन-देन लोहे और तांबे से शुरू हुए। बड़े लेनदेन चांदी
और सोने से होने लगे। कुछ समय के बाद तांबे, चांदी और सोने के सिक्के बन गये। तब व्यापार में बड़ी सरलता हो गयी।

बड़े व्यापारियों को धातुओं के सिक्के लाने-ले जाने में भी कठिनाई होने लगी।

धीरे-धीरे एक रुपये तक के कागज के नोट बन गये।
बैंक खुले और उनके जरिए भी व्यापार होने लगा। अब हम दुनिया के किसी भी देश से बड़ी सरलता से व्यापार कर सकते हैं। - adimanav ki kahani


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